MP Election: क्या इन वजहों से फिर मामा के सिर बंधेगा जीत का सेहरा? BJP के नए चेहरे के लिए ऐसे राह होगी मुश्किल
25 सितंबर को जब भोपाल में कार्यकर्ता महाकुंभ हुआ था, तो प्रधानमंत्री ने इन योजनाओं का जिक्र तक नहीं किया था। लेकिन चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों से ही पीएम ने भी लाड़ली बहना योजना का नाम लेना शुरू किया है। मतदान से ठीक चार दिन पहले पहली बार पीएम ने बड़वानी की रैली में शिवराज सिंह चौहान के साथ उनकी योजनाओं का जिक्र किया है, बल्कि उनके कामों की तारिफ भी की…
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मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी या फिर भाजपा सत्ता पर काबिज होगी, इसका खुलासा तो 3 दिसंबर को होगा। लेकिन परिणाम से पहले आए एग्जिट पोल ने भाजपा-कांग्रेस की बेचैनी बढ़ा दी है। गुरुवार को आए ज्यादातर एग्जिट पोल में भाजपा की सरकार बनती दिख रही है, जबकि कुछ सर्वे कांग्रेस की वापसी का अनुमान लगा रहे हैं। 8 एग्जिट पोल में से 4 भाजपा की सत्ता में वापसी करवा रहे हैं, जबकि 3 पोल कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना जता रहे हैं, जबकि एक सत्ता के करीब बता रहे हैं।
इन एग्जिट पोल के अनुमान अगर नतीजों में तब्दील होते हैं, तो फिर भाजपा का मध्यप्रदेश में दबदबा बना रहेगा और कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सभी कोशिशें नाकाम रहेंगी। ऐसे में भाजपा के लिए लाड़ली बहना योजना गेम चेंजर साबित हुई है और शिवराज सिंह चौहान का चेहरा कमलनाथ पर भारी पड़ा है। लेकिन इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस चुनाव में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, इस पर संशय बरकरार है। हालांकि सीएम शिवराज सिंह चौहान के प्रचार तंत्र ने इसे लाड़ली बहना योजना से जोड़कर परिणाम आने के 48 घंटे पहले ही दिल्ली दरबार में दबाव बना दिया कि लाड़ली बहन योजना ही असली गेम चेंजर साबित होगी। शिवराज सिंह चौहान 230 विधानसभाओं में से करीब 160 में प्रचार के लिए पहुंचे। हर रोड शो और रैलियों में चौहान लाड़ली बहन योजना का जिक्र करते हुए नजर आए। पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह प्रचार के शुरुआती दौर में लाड़ली योजना का जिक्र करने के बजाए केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार के काम को तवज्जो देते थे।
25 सितंबर को जब भोपाल में कार्यकर्ता महाकुंभ हुआ था, तो प्रधानमंत्री ने इन योजनाओं का जिक्र तक नहीं किया था। लेकिन चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों से ही पीएम ने भी लाड़ली बहना योजना का नाम लेना शुरू किया है। मतदान से ठीक चार दिन पहले पहली बार पीएम ने बड़वानी की रैली में शिवराज सिंह चौहान के साथ उनकी योजनाओं का जिक्र किया है, बल्कि उनके कामों की तारिफ भी की। राज्य में भाजपा ने सीएम चेहरा किसी को घोषित नहीं किया था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान चुनाव को लीड कर रहे थे। शिवराज बनाम कमलनाथ के बीच यह जंग मानी जा रही थी। ऐसे में शिवराज की लोकप्रियता कमलनाथ पर भारी पड़ते दिख रही है। एग्जिट पोल सर्वे में शिवराज पहली पसंद बनकर उभरे हैं। इसी का भाजपा को चुनाव में फायदा मिलता दिख रहा है। महिलाओं के बीच शिवराज की अपनी एक लोकप्रियता है, जबकि कमलनाथ की उस तरह से पकड़ नहीं है।
नाम न छापने के अनुरोध पर भाजपा एक वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद ने अमर उजाला से कहा कि चुनाव में लाड़ली बहना योजना को दरकिनार करना संभव नहीं था। इसलिए पार्टी ने अंतिम दौर में जमीनी स्थिति को भांपते हुए अपनी रणनीति बदल ली थी। शिवराज के साथ संगठन भी जोर शोर के साथ इस योजना के प्रचार में जुट गया था। खुद सीएम भी सत्ता में वापसी के लिए आक्रामक प्रचार अभियान में जुटे रहे। इसलिए वे हर सभा में न केवल इसका जिक्र करते बल्कि महिला वोटर से मुलाकात भी करते थे। लाड़ली बहनों में भी मामा का क्रेज दिख रहा है। ऐसे से अगर भाजपा प्रदेश में वापसी करती है, तो सबसे बड़ा श्रेय शिवराज सिंह चौहान को ही जाएगा। क्योंकि उनकी इस योजना ने पूरा खेल पलट दिया, जिससे पार्टी को फायदा होता दिख रहा है। यहीं नही, 3 दिसंबर को नतीजे कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं, तो भी जिम्मेदार शिवराज सिंह चौहान को ही माना जाएगा। क्योंकि प्रदेश में 18 सालों से वे सीएम हैं। उनके नेतृत्व में ही राज्य में सरकार चल रही थी। लिहाजा हार के लिए जिम्मेदार केंद्रीय नेतृत्व नहीं शिवराज ही होंगे।
शाह की रणनीति और सोशल इंजीनियरिंग का भी कमाल
अगर एग्जिट पोल के अनुमान सहीं होते हैं, तो भाजपा की इस जीत में मोदी फैक्टर का भी अहम रोल माना जाएगा। भाजपा एमपी चुनाव में मोदी का नाम और काम को लेकर उतरी थी। पीएम मोदी चुनावी मैदान में उतरकर सियासी फिजा को बदलने की ताकत रखते हैं। भाजपा सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही थी, लेकिन पीएम मोदी ने ताबड़तोड़ 14 रैलियां करके माहौल को भाजपामय बना दिया। पीएम मोदी ने एमपी के हर इलाके में जनसभाएं कीं और सभी यह कहते थे, ‘मोदी की गारंटी’ है। इसके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने चुनावी रणनीति की कमान संभाल रखी थी। उन्होंने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को राज्य का प्रभारी बनाया। इसके बाद शाह के मागर्शदन में यादव की टीम काम करती रही। इस टीम ने कांग्रेस की मजबूत मानी जाने वाली सीटों पर माइक्रो लेवल पर बूथ प्रबंधन किया। इतना ही नहीं चुनावी जनसभाओं के ज्यादा बैठकें करके नाराज नेताओं को मनाया, जिसका फायदा चुनाव में मिलता दिख रहा है। इस तरह से केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति भाजपा की जीत की अहम वजह मानी जा रही है।
मध्यप्रदेश में भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग चुनाव में जीत का अहम कारण मानी जा रही है। प्रदेश में दलित, आदिवासी, ओबीसी, सामान्य व अन्य जातियों का ज्यादातर वोट भाजपा को दिया है। महिलाओं ने कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के पक्ष में वोटिंग की है। कांग्रेस सामान्य और ओबीसी वोट की लड़ाई में भी पिछड़ गई। एक्सिस माई इंडिया के मुताबिक भाजपा को सामान्य वर्ग में 57 और ओबीसी में 56 फीसदी वोट मिलने के अनुमान हैं। इसी तरह से तमाम सर्वे भी बता रहे हैं कि आदिवासी और ओबीसी वोट कांग्रेस की तुलना में भाजपा को ज्यादा मिलने की संभावना है।
नाराज नेताओं को मनाने में भी सफल रही पार्टी
यहीं नहीं कर्नाटक की हार से भाजपा ने सबक लिया और मध्यप्रदेश में चुनाव की तारीखें घोषित होने से पहले उम्मीदवारों का चयन कर उनके नाम घोषित कर दिए। भाजपा ने कमजोर माने जाने वाली सीटों पर डेढ़ महीने पहले कैंडिडेट्स को टिकट देकर उतारा, जिससे प्रत्याशियों को प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिला। इसके अलावा टिकट न मिलने से नाराज नेताओं को भी भाजपा काफी हद तक मनाने में कामयाब रही। ऐसे ही भाजपा ने तीन केंद्रीय मंत्री सहित सात सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को विधानसभा का टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा। भाजपा ने इन्हें अलग-अलग क्षेत्रों से उतारा, जिसका सियासी फायदा भी मिलता दिख रहा है।